Durga Chalisa is a devotional bhajan song sung by Hindus to praise Goddess Durga. This chalisha has been very beautifully sung by many renowned singers of the Indian industry, but the effort that goes into reciting this chalisha ceases it’s beauty.
Sant Tulsidas A great poet-saint of the 16th century who also wrote Hanuman Chalisa has written Durga Chalisa. There are a total of 40 verses (Chaupais) in this chalisha singing praises about the victory of Goddess Durga over asura/rakshas, her different forms and her devotees.
Reciting this chalisa is considered highly auspicious and during Navratri, if you recite this chalisa, then it brings more power to your prayer, as reading this chalisa will invoke courage, strength and blessings of Maa Durga.
Durga Chalisa Lyrics
Attribute | Details |
---|---|
Title | Durga Chalisa |
Composer | Sant Tulsidas (believed) |
Language | Awadhi / Hindi |
Verses | 40 (Chaupais) |
Dedicated To | Goddess Durga |
Significance | Devotional hymn invoking strength, protection, and blessings |
Recitation Benefits | Removes obstacles, grants courage, success, and divine grace |
Commonly Recited During | Navratri, Durga Puja, and daily prayers |
Popular Versions | Sung by Anuradha Paudwal, Hariharan, and other devotional singers |
Durga Chalisa Lyrics
नमो-नमो दुर्गे सुख करनी
नमो-नमो अम्बे दुःख हरनी
निरंकार है ज्योति तुम्हारी
तिहुँ लोक फैली उजियारी
शशि ललाट मुख महाविशाला
नेत्र लाल भृकुटि विकराला
रूप मातु को अधिक सुहावे
दरश करत जन अति सुख पावे
तुम संसार शक्ति लै कीना
पालन हेतु अन्न धन दीना
अन्नपूर्णा हुई जग पाला
तुम ही आदि सुन्दरी बाला
प्रलयकाल सब नाशन हारी
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें
रूप सरस्वती को तुम धारा
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा
परगट भई फाड़कर खम्बा
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं
श्री नारायण अंग समाहीं
क्षीरसिन्धु में करत विलासा
दयासिन्धु दीजै मन आसा
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी
महिमा अमित न जात बखानी
मातंगी धूमावति माता
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता
श्री भैरव तारा जग तारिणी
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी
केहरि वाहन सोह भवानी
लांगुर वीर चलत अगवानी
कर में खप्पर खड्ग विराजै
जाको देख काल डर भाजै
सोहै कर में अस्त्र त्रिशूला
जाते उठत शत्रु हिय शूला
नगरकोट में तुम ही विराजत हो।
तिहुंलोक में डंका बाजत
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे
रक्तबीज शंखन संहारे
महिषासुर नृप अति अभिमानी
जेहि अघ भार मही अकुलानी
रूप कराल कालिका धारा
सेन सहित तुम तिहि संहारा
परी भीड़ संतन पर जब-जब
भई सहाय मातु तुम तब-तब
अमरपुरी अरु बासव लोका
तब महिमा सब कहें अशोका
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी
प्रेम भक्ति से जो यश गावें
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें
ध्यान तुम्हें जो नर मन लाई
जन्म-मरण ते सो छुटि जाई
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी
शंकर आचारज तप कीनो
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको
शक्ति रूप का मरम न पायो
शक्ति गई तब मन पछतायो
शरणागत हुई कीर्ति बखानी
जय-जय-जय जगदम्ब भवानी
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा
मोको मातु कष्ट अति घेरो
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो?
आशा तृष्णा निपट सतावें
रिपू मुरख मौही अति डरपावे
शत्रु नाश कीजै महारानी
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी
करो कृपा हे मातु दयाला
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला
जब लगि जिऊं दया फल पाऊँ
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ
दुर्गा चालीसा जो गावै
सब सुख भोग परमपद पावै
देवीदास शरण निज जानी
करहु कृपा जगदम्ब भवानी
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